गेहूं के निर्यात पर लगी रोक, आख़िर क्यों बढ़ रहे हैं आटे के दाम

 भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लागू कर दिया है. आधिकारिक अधिसूचना के मुताबिक़, भारत ने घरेलू बाज़ार में गेहूं की बढ़ती क़ीमतों के मद्देनज़र यह फ़ैसला लिया है.


सरकार की ओर से इस संबंध में नोटिफ़िकेशन भी जारी किया गया है.


अधिसूचना में कहा गया है कि भारत, पड़ोसी देशों और दूसरे ज़रूरतमंद देशों की खाद्य सुरक्षा ख़तरे में है.


सरकार ने कहा कि यह क़दम "देश की समग्र खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन करने और पड़ोसी और अन्य ज़रूरतमंद देशों की ज़रूरत का समर्थन करने" के लिए उठाया गया है.


हालांकि ये आदेश पहले से अनुबंधित निर्यात पर लागू नहीं होगा. इसके अलावा भारत सरकार की अनुमति पर, कुछ शर्तों के साथ भी निर्यात जारी रहेगा.

एक साल पहले भारत के ख़ुदरा बाज़ार में आटे की औसत क़ीमत 2880 रुपये प्रति क्विंटल थी. आज ये बढ़कर 3291 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है.


यानी आटे के दाम में पिछले एक साल में ख़ुदरा बाज़ार में प्रति क्विंटल तक़रीबन 400 रुपये का इजाफ़ा हुआ है.


आपके घर के आटे का बजट भी इसी क्रम में कुछ हद तक ज़रूर प्रभावित हुआ होगा.


साल 2010 के बाद आटे के दाम में इस बार रिकॉर्ड बढ़ोतरी देखी जा रही है.


आख़िर क्यों? इस रिपोर्ट में इसी सवाल का जवाब तलाशने की एक कोशिश करेंगे.

मार्च-अप्रैल में रिकॉर्ड गर्मी

गेहूं की खेती भारत में उत्तर भारत में ज्यादा होती है. मध्य भारत में मध्य प्रदेश में भी पैदावार खूब होती है.


मार्च और अप्रैल के महीने में ही गेहूं की कटाई ज़्यादातर इलाकों में होती है.


इस साल उत्तर भारत में मार्च और अप्रैल के महीने में रिकॉर्ड गर्मी पड़ी है. जिस वजह से गेहूं की पैदावार पर काफ़ी असर पड़ा है.


गेहूं को मार्च तक 25-30 डिग्री सेल्सियस के तापमान की ज़रूरत होती है. लेकिन मार्च में उत्तर भारत के कई इलाकों में पारा इससे कहीं ऊपर था.


सरकारी फाइलों में गेहूं की पैदावार 5 फ़ीसदी के आसपास कम बताई जा रही है.


लेकिन ruralvoice.in से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हरवीर सिंह कहते हैं, "पश्चिम उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश के किसानों से मैंने बात की. 15-25 फ़ीसदी पैदावार इस बार कम हुई है."


आटे के लिए गेहूं की ज़रूरत होती है. पैदावार कम होने की वजह से गेहूं के दाम पर असर पड़ा. आटे की कीमत में इज़ाफ़ा होने के लिए ये अहम वजह है.

रूस-यूक्रेन युद्ध

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समाप्त

वैश्विक परिस्थितियों ने भी गेहूं की कीमतें बढ़ाने में योगदान दिया. फरवरी के अंत में रूस यूक्रेन की जंग ने भारत के गेहूं की माँग दुनिया में थोड़ी और बढ़ा दी.


विश्व में गेहूं का निर्यात करने वाले टॉप 5 देशों में रूस, अमेरिका, कनाडा, फ़्रांस और यूक्रेन हैं. इसमें से तीस फ़ीसदी एक्सपोर्ट रूस और यूक्रेन से होता है.


रूस का आधा गेहूं मिस्र, तुर्की और बांग्लादेश ख़रीद लेते हैं. जबकि यूक्रेन के गेहूं के ख़रीदार हैं मिस्र, इंडोनेशिया, फिलीपींस, तुर्की और ट्यूनीशिया.


अब दुनिया के दो बड़े गेहूं निर्यातक देश, आपस में जंग में उलझे हों, तो उनके ग्राहक देशों में गेहूं की सप्लाई बाधित होना लाज़िमी है.


युद्ध शुरू होने के कुछ हफ़्ते बाद ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कार्यक्रम में गेहूं निर्यातकों से एक अपील की थी.


उन्होंने कहा था, "इन दिनों दुनिया में भारत के गेहूं की तरफ़ आकर्षण बढ़ने की ख़बरें आ रही हैं. क्या हमारे गेहूं के निर्यातकों का ध्यान इस तरफ़ है? भारत के फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन का ध्यान इस तरफ़ है क्या?"


उनके इस बयान का मतलब निकाला गया, गेहूं के निर्यातक यूक्रेन संकट के बीच, भारत के निर्यातक उन देशों को गेहूं निर्यात करने के बारे में सोचें, जो अब तक यूक्रेन और रूस से इसे ख़रीदते आए हैं.

गेहूं निर्यात में रिकॉर्ड बढ़ोतरी

नतीजा ये हुआ कि गेहूं का निर्यात भी इस बार रिकॉर्ड स्तर पर हुआ है. पिछले तीन सालों में गेहूं के निर्यात में रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है.


नीचे दिए गए ग्राफ़ से इस बढ़ोतरी को आसानी से समझा जा सकता है. रूस-यूक्रेन संकट का असर गेहूं की सरकारी ख़रीद पर भी दिखा.


केंद्र सरकार ने खु़द स्वीकार किया है कि इस साल सरकारी ख़रीद कम हुई है क्योंकि प्राइवेट व्यापारियों ने एमएसपी से ज़्यादा दाम पर गेहूं खरीदा.


हरवीर सिंह के मुताबिक़, "सरकारी ख़रीद कम होने की पीछे केंद्रीय मंत्रियों का बड़बोलापन भी कहीं ना कहीं ज़िम्मेदार है. उन्हें अंदाज़ा ही नहीं था कि आने वाले दिनों में दाम इस क़दर बढ़ने वाले हैं."

बाज़ार सेंटीमेंट - दाम कम नहीं

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